दिलीप सुराणा की डोलो 650 के ब्रांड बनने की कहानी:कोरोना के दौरान जितनी डोलो टेबलेट्स बिकीं, उन्हें एक साथ रखें तो 6 हजार माउंट एवरेस्ट बन जाएंगे

थर्ड आई न्यूज

कोरोना की तीसरी लहर के बीच डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन हो या सोशल मीडिया के मीम्स। डोलो 650 छाई हुई है। दर्द और बुखार की इस दवा ने बिक्री के मामले में क्रोसिन को बहुत पीछे छोड़ दिया है। मार्च 2020 से दिसंबर 2021 तक, कोरोना महामारी के 20 महीनों में 567 करोड़ रुपए की 350 करोड़ डोलो 650 टैबलेट बिकी हैं।

अगर 1.5 सेमी लंबी डोलो की इन 350 करोड़ टैबलेट्स को एक के ऊपर एक रखेंगे, तो माउंट एवरेस्ट जैसे 6 हजार पहाड़ खड़े हो सकते हैं। यह इतनी ऊंचाई है, जिसमें 63 हजार बुर्ज खलीफा बन सकते हैं। डोलो 650 की पॉपुलैरिटी का आलम ये है कि सोशल मीडिया पर इसके मजेदार मीम्स ट्रेंड कर रहे हैं।

हम यहां डोलो 650 के ब्रांड बनने की पूरी कहानी पेश कर रहे हैं। कैसे एक देसी ब्रांड ने विदेशी क्रोसिन को पीछे छोड़ दिया? आखिर वो क्या जादू है, जिसकी वजह से डॉक्टर सबसे ज्यादा डोलो 650 प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।

डोलो 650 है भारत का ‘फेवरेट स्नैक’ :
2021 में डोलो 307 करोड़ रुपए की बिक्री के साथ भारत की दूसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली एंटी-फीवर और एनाल्जेसिक दवा बन गई। वहीं GSK की कालपोल 310 करोड़ रुपए की बिक्री के साथ टॉप पर है। क्रोसिन छठवें नंबर पर चली गई है। डोलो 650 बनाने वाली कंपनी बेंगलुरु की माइक्रो लैब्स लिमिटेड है। वहीं कालपोल और क्रोसिन को UK की मल्टीनेशनल कंपनी GSK फार्मास्यूटिकल्स बनाती है।

दिसंबर 2021 में डोलो 650 ने 28.9 करोड़ रुपए की टैबलेट बेची हैं, जो दिसंबर 2020 के मुकाबले 61.45% ज्यादा है। ये आंकड़े डोलो की बढ़ती लोकप्रियता को दिखाने के लिए काफी हैं I

पैरासिटामॉल का दूसरा नाम बना डोलो :
पैरासिटामॉल एक जेनरिक सॉल्ट है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर दर्द और बुखार में किया जाता है। ये 1960 से मार्केट में है। चाहे क्रोसिन हो, कालपोल हो या डोलो; फार्मा कंपनियां अलग-अलग ब्रांड के नाम से पैरासिटामॉल साल्ट ही बेचती हैं। जिस तरह से बोतल बंद पानी के लिए बिस्लेरी और फोटो कॉपी के लिए जेरॉक्स ब्रांड का इस्तेमाल होता है, वैसे ही पैरासिटामॉल को लोग डोलो बोलने लगे हैं।

डोलो 650 को लोग सिर्फ खरीद नहीं रहे, गूगल भी कर रहे हैं। जनवरी 2020 में कोरोना महामारी आने के बाद गूगल पर 2 लाख से ज्यादा लोगों ने ‘Dolo 650’ कीवर्ड सर्च किया गया है।

डोलो 650 में क्या जादू है?
महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग के HOD डॉ. वीपी पांडेय के मुताबिक, ‘बुखार के लिए सालों से पैरासिटामॉल सबसे कारगर दवा है। ये बुखार जल्द कम करती है। इसके साइड इफेक्ट्स मिनिमम हैं। ये बच्चों से लेकर बुजर्गों तक को आराम से दी जा सकती है। पैरासिटामॉल साल्ट के सैकड़ों ब्रांड्स बाजार में उपलब्ध हैं।’

डोलो 650 की पापुलैरिटी पर डॉ वीपी पांडेय कहते हैं, ‘इसकी दो बड़ी वजह हैं। पहली वजह, इस दवा का नाम जुबान पर चढ़ जाता है और ये हर जगह आसानी से अवेलेबल है। इसके कॉम्पिटीटर्स पायरीजेसिक, पैसिमॉल, फेपानिल और पैरासिप वगैरह हैं, जो बोलने और लिखने में कठिन हैं। दूसरी वजह, ये दवा 650 mg में आती है, जिस वजह से इसका असर देर तक रहता है। इसलिए तेज बुखार में डॉक्टर इसे ज्यादा प्रिस्क्राइब करते हैं।’

डोलो 650 कौन बनाता है :
डोलो 650 को बेंगलुरु की दवा कंपनी माइक्रो लैब्स लिमिटेड बनाती है। इस कंपनी की शुरुआत 1973 में दवा डिस्ट्रब्यूटर जीसी सुराणा ने की थी। आज इस कंपनी को उनके बेटे दिलीप सुराणा चलाते हैं।

माइक्रो लैब्स ने अपने पैरासिटामॉल ब्रांड डोलो को 650 mg की कैटेगरी में लॉन्च किया। कंपनी ने जान बूझकर इस बात पर फोकस किया कि सिर्फ हम पैरासिटामॉल की 650 mg देते हैं। बाकी ब्रांड्स 500 mg में ही हैं।

माइक्रो लैब्स ने अपने ब्रांड प्रमोशन में FUO यानी ‘Fever of Unknown Origin’ टर्म का इस्तेमाल किया। इससे डॉक्टर्स का प्रिस्क्रिप्शन बढ़ गया। अगर बुखार का कारण पता नहीं है तो डॉक्टर डोलो 650 प्रिस्क्राइब करने लगे।

CEO मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में माइक्रो लैब्स के मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप सुराणा ने भी इस बात की पुष्टि की। उन्होंने कहा- ऐसे बहुत से मामले हैं जहां बिना ओरिजिन के पता चले बहुत तेज बुखार रहता है। यहां हमने डॉक्टर्स को डोलो 650 प्रमोट करना शुरू किया। डॉक्टर्स ने हाई फीवर के कॉन्सेप्ट को माना और इसका प्रिस्क्रिप्शन बढ़ा दिया।

क्रोसिन ने खोला डोलो के लिए बड़ा बाजार :
पैरासिटामॉल कैटेगरी में लॉन्च होने वाला पहला ब्रांड क्रोसिन था। इसके पीछे क्रूक्स इंटरफ्रान के सेल्स और प्रमोशन हेड जीएम मसूरकर का हाथ था। 1990 में कंपनी ने अपने पॉपुलर ब्रांड क्रोसिन को स्मिथक्लाइन बीचम फार्मास्यूटिकल्स को बेच दिया। जिसका बाद में ग्लैक्सो वेलकम में विलय हो गया। इसे ही आज GSK, यानी ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन कंपनी के नाम से जाना जाता है।

GSK के पास पहले से कालपोल ब्रांड था। कालपोल और क्रोसिन में समय के साथ एक बड़ा अंतर देखने को मिला। कालपोल प्रिस्क्रिप्शन ब्रांड बन गया और क्रोसिन ओवर द काउंटर ब्रांड बन गया। यानी बुखार और दर्द में लोग बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के मेडिकल स्टोर से खुद जाकर क्रोसिन खरीदकर खाने लगे। यहीं से क्रोसिन का परसेप्शन बदल गया और यही बात डोलो के पक्ष में चली गई।

कोरोना की लहर में डॉक्टर ने जमकर डोलो प्रिस्क्राइब किया। एक दूसरे की देखा-देखी लोग खुद भी मेडिकल स्टोर जाकर डोलो 650 खरीदने लगे। यानी, ओवर द काउंटर मेडिसिन में डोलो ने क्रोसिन को रिप्लेस कर दिया और महज 20 महीने में बिक्री के रिकॉर्ड तोड़ दिए।