गल्ला पट्टी की पार्टियों से जुड़े हैं बादाम बिच्छी के काले कारोबार के तार, राज्य का वित्त विभाग शीघ्र करेगा कार्रवाई

थर्ड आई न्यूज

गुवाहाटी. म्यांमार यानी बर्मा से अवैध रूप से भारी मात्रा में भारत आ रही मूंगफली (बादाम बिच्छी) के तार फैंसी बाजार के गल्ला पट्टी की कुछ पार्टियों से जुड़े हुए हैं. तहकीकात करने पर पता चला कि सिलचर के बादाम बिच्छी सिंडिकेट से गल्ला पट्टी की सुसवाणी, जाजू, बीएन, सीएम. करनी और कृष्णा नामधारी पार्टियां सीधे माल लेती है और मोटा मुनाफा खाकर थोक बाजार में बेच देती है. यहां मामला स्मगलिंग, टैक्स चोरी और मुनाफाखोरी का बनता है. गौरतलब है कि बादाम बिच्छी पर 5% जीएसटी है. बर्मा से अवैध रूप से हर महीने सैकड़ों ट्रक माल गुवाहाटी सहित पूर्वोत्तर भारत की मंडियों में आ कर खप रहा है. एक मोटे अनुमान के अनुसार इस काले कारोबार के चलते राज्य को राजस्व के रूप में हर महीने करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है.

इस बारे में राज्य के फाइनेंस डिपार्टमेंट के आला अधिकारियों से बात करने पर उन्होंने इतने बड़े पैमाने पर बादाम बिच्छी की स्मगलिंग के बारे में अनभिज्ञता प्रकट की. जब उन्हें सारा मामला समझाया गया तो उन्होंने इस पर तुरंत संज्ञान लेने का आश्वासन दिया. ऐसे में गल्ला पट्टी के टैक्स चोर और मुनाफाखोर व्यापारियों के खिलाफ कभी भी बड़ी कार्रवाई हो सकती है.

यहां दिलचस्प बात यह है कि कुछ व्यापारी दावा करते हैं कि वे बर्मा से आयातित बादाम बिच्छी को पक्के में यानी सरकार को टैक्स चुका कर खरीद रहे हैं. यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि मणिपुर के मोरेह बॉर्डर से कस्टम ड्यूटी अदा कर बादाम बिच्छी का आयात नहीं होता है. सारा माल अंडर ग्राउंड ग्रुप्स और कुछ बेईमान व्यापारियों की मिलीभगत से स्मगल होकर आता है. जहां तक पक्के बिल का सवाल है तो सिलचर के कुछ व्यवसायियों के पास साउथ की बादाम बिच्छी का पुराना स्टॉक बुक्स में पड़ा है. उसी के एवज में ये एक – आध कंसाइनमेंट माल पक्के में दिखा देते हैं. इसका फायदा उठाकर गुवाहाटी के गल्ला पट्टी के व्यापारी यह दावा करते हैं कि उन्होंने माल टैक्स देकर वे बिल के जरिए मंगवाया है, जबकि यह पूरी तरह झूठ है. यहां सीधा- सा सवाल यह भी खड़ा होता है कि साउथ का माल गुवाहाटी की मंडी में सिलचर से कैसे आ सकता है. और अगर आएगा भी तो उसका पड़ता कैसे बैठेगा. बहरहाल, बर्मा के सुपारी सिंडिकेट के बाद अब बादाम बिच्छी सिंडिकेट भी सरकार, कर विभाग और मीडिया के राडार पर है.