Gyanvapi Case: औरंगजेब के फरमान पर मंदिर तोड़ बनाई गई मस्जिद, हिंदू पक्ष की तरफ से हाई कोर्ट में रखे गए ऐतिहासिक तथ्य
थर्ड आई न्यूज

प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट में बुधवार को आदि विश्वेश्वर नाथ मंदिर मस्जिद विवाद की सुनवाई के दौरान कई ऐतिहासिक तथ्यों को रखा गया। मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने तर्क दिया कि औरंगजेब के फरमान से आदि विश्वेश्वर नाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाईं गई है। भूमि का स्वामित्व मंदिर का ही रहा है। ऐसा कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हैं जिससे कहा जा सके कि वक्फ गठित किया गया था।
मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि ‘राजा भूमि का मालिक नहीं होता, वह टैक्स वसूली करता है। औरंगजेब ने कभी भी भूमि का मालिकाना हक नहीं लिया। मंदिर परिसर की बाउंड्रीवॉल हजारों साल पुरानी है, मस्जिद के ढांचे से पुरानी है। इसलिए पूरा परिसर ज्ञानवापी मंदिर का है।’
न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि लंबे समय से इस्तेमाल करने की अवधारणा मात्र से पारंपरिक अधिकार नहीं मिल जाता। वक्फ कब कैसे गठित किया गया, इसका कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। राम जन्मभूमि मंदिर विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने जमीन का स्वामित्व मूर्ति को दिया है। इसलिए ज्ञानवापी परिसर विश्वेश्वरनाथ मंदिर का है।
उनका यह भी कहना था कि आम मुसलमानों को मस्जिद में नमाज अदा करने का अधिकार नहीं है। वर्ष 1936 में दीनमोहम्मद व अन्य ने बनारस सिविल कोर्ट में दावा दाखिल किया, जिसमें राहत नहीं मिली। हाई कोर्ट ने 1942 में वादियों को ही जुमा की नमाज अदा करने की इजाजत दी। उस सिविलवाद में वक्फ बोर्ड अथवा अंजुमन इंतजामिया मसाजिद पक्षकार नहीं रहे हैं।
यह भी कहा गया कि अकबर ने भी इलाहाबाद किला बनाने के लिए जमीन खरीदी थी। औरंगजेब ने दक्षिण भारत में जमीन खरीदकर मस्जिद का निर्माण कराया था। ब्रिटिश शासनकाल में लार्ड कर्जन ने छत्ता द्वार पर लार्ड विश्वेश्वरनाथ नौबतखाना बनवाया था, मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए नौबतखाना नहीं बनता।
उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट 1983 में मंदिर की स्थिति स्पष्ट की गई है। वाराणसी की अधीनस्थ अदालत की तरफ से परिसर का सर्वे कराने संबंधी आदेश को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद वाराणसी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने चुनौती दी है। कोर्ट पूर्व में ही अधीनस्थ अदालत के उस आदेश पर 31 जुलाई तक रोक लगा रखी है जिसमें परिसर का पुरातत्व विभाग से सर्वेक्षण कराने की बात है। मसाजिद पक्ष की बहस 15 जुलाई को होगी।