2020-21 में 3 लाख लड़कियों ने स्कूल छोड़ा:इनमें 74% यूपी, गुजरात और असम से, 58% की पढ़ाई घरेलू काम और शादी के कारण छूटी

थर्ड आई न्यूज

नई दिल्ली l बेटियों की पढ़ाई-लिखाई के मोर्चे पर देश के लिए अच्छी खबर है। 2021-22 में 11 से 14 साल की 3 लाख लड़कियों ने ही स्कूल छोड़ा, जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा 10.3 लाख था। पढ़ाई बीच में छोड़ने वाली इन 3.03 लाख में से करीब 2.30 लाख लड़कियां सिर्फ 3 राज्यों यूपी , गुजरात और असम से हैं।

यह तस्वीर तब है जब कोरोनाकाल में यूपी के सरकारी स्कूलों में लड़कियों का रिकॉर्ड दाखिला हुआ था। 2020-21 में कोरोना के कारण सर्वे नहीं हुआ। 2018-19 में 13.2 लाख लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ी थी।​​​​​

स्कूल छोड़ने के कारणों का विश्लेषण किया जाए तो यह बातें सामने आती हैं :

  • 33% लड़कियां घरों में घरेलू कार्य करने लगी हैं।
  • 25% लड़कियों की पढ़ाई शादी के कारण छूट गई।
  • कई जगहों पर यह भी पाया गया कि लड़कियों ने स्कूल छोड़ने के बाद परिजनों के साथ मजदूरी या लोगों के घरों में सफाई करने का काम शुरू कर दिया।
  • घर में किसी बच्चे का जन्म होने के बाद उसे संभालने के लिए लड़की को पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि माता-पिता दोनों मजदूरी के लिए बाहर जाते हैं।
  • ऐसे भी मामले हैं, जिनमें लड़की की बढ़ती उम्र के कारण माता-पिता ने उसकी पढ़ाई बीच में छुड़वा दी।

5 साल तक स्कूल में पढ़ाई करने के बाद भी 55% महिलाएं एक वाक्य भी नहीं पढ़ पाती हैं :
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 5 साल स्कूल में पढ़ने के बाद भी 55% युवा महिलाएं (1990 के बाद पैदा हुई) एक वाक्य तक नहीं पढ़ सकती हैं।

स्कूलों में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या भले बढ़ रही हो, लेकिन भारत में पढ़ाई का स्तर गिर रहा है। सबूत है- वर्ल्ड बैंक की यह रिपोर्ट, जो कहती है कि भारत में 5 साल स्कूल में पढ़ने के बाद भी 55% युवा महिलाएं (1990 के बाद पैदा हुई) एक वाक्य तक नहीं पढ़ सकती हैं, जबकि 1960 के दशक में पैदा होने वाली ऐसी 80% महिलाएं एक वाक्य पढ़ने में सक्षम हैं।

दुनिया के 80 कमजोर देशों में 40 साल तक किए गए सर्वे में यह तस्वीर सामने आई है। पेरू और वियतनाम जैसे 14 देशों में ही शिक्षा का स्तर सुधरा है।

क्लासरूम में ज्यादा बच्चे होने से गुणवत्ता बिगड़ी :
थिंक टैंक सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के शोध के मुताबिक, कई गरीब देशों में प्राथमिक शिक्षा मुफ्त कर दी गई है, जिससे कक्षाओं में बच्चे बढ़ गए हैं। इससे पढ़ाई की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है। वर्ल्ड बैंक की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, छोटे बच्चों में सीखने की क्षमता कम होने के लिए खराब पढ़ाई, गैर-प्रभावी शिक्षा नीतियां व खस्ताहाल मैनेजमेंट जिम्मेदार हैं।

कोरोना के दौर में लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से पूरी शिक्षा प्रणाली ऑनलाइन मोड में चली गई। इससे भी बच्चों के शैक्षणिक विकास पर असर पड़ा। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, सरकारों को स्कूली बच्चों की संख्या बढ़ाने के साथ ही गुणवत्ता पर भी जोर देना चाहिए।

सर्वे कहता है कि 1960 के दशक में पैदा होने वाली 29% महिलाओं ने ही 5 साल की स्कूली शिक्षा पूरी की, जबकि वर्ष 2000 के बाद पैदा होने वाली ऐसी महिलाओं की संख्या 84% हो चुकी है।

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