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लंदन I ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ-II के निधन के बाद जहां ज्यादातर पश्चिमी देशों में शोक की लहर है। वहीं, अफ्रीका और भारत में ब्रिटिश राजघराने और ईस्ट इंडिया कंपनी के काले इतिहास को लेकर चर्चा जारी है। एलिजाबेथ के निधन के बाद सबसे ताजा बहस राजघराने के ताज को लेकर छिड़ी है, जिसमें अफ्रीका से लेकर भारत तक के कई रत्न जड़े हैं। इनमें सबसे खास है ‘कोहिनूर’, जिसे भारत से ब्रिटेन ले जाया गया। वहीं अन्य हीरों में अफ्रीका का ‘द ग्रेट स्टार’ और ‘सेकंड स्टार ऑफ अफ्रीका’ शामिल हैं।
बीते एक हफ्ते में सोशल मीडिया से लेकर ऑनलाइन वेबसाइट्स में कोहिनूर को भारत वापस लौटाने की मांग उठने लगी है। 105 कैरेट का कोहिनूर हीरा दुनिया के सबसे बड़े कट डायमंड्स में से एक है। भारत में यह हीरा हजारों साल पहले पाया गया था और कई राजाओं के हाथ से होते हुए यह ब्रिटिश साम्राज्य के पास पहुंचा। मजेदार बात यह है कि कोहिनूर को लौटाने की मांग सिर्फ भारत ही नहीं करता, बल्कि पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान भी इस पर दावेदारी ठोक चुके हैं। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर कोहिनूर हीरे की मांग अब तक कौन-कौन कर चुका है? भारत में इसे लाने की अब तक क्या कोशिशें हुई हैं? मोदी सरकार ने कोहिनूर को लेकर क्या कहा है? इसके अलावा ब्रिटिश महारानी के ताज के इस रत्न के लौटने की क्या संभावनाएं हैं?
महारानी के निधन के बाद कहां-कहां उठ चुकी है कोहिनूर लौटाने की मांग?
- ‘भगवान जगन्नाथ का है कोहिनूर’ :
भारत में सिर्फ सोशल मीडिया पर ही कोहिनूर को लौटाए जाने की मांग नहीं उठी है। बल्कि इसे लेकर ऑनलाइन याचिकाएं दायर हुई हैं। इसके अलावा कुछ संस्थानों ने सीधे सरकार से अपील की है कि वे कोहिनूर को लौटाने के लिए ब्रिटेन से सीधा संपर्क करे। इनमें पहला नाम आता है ओडिशा की एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था श्री जगन्नाथ सेना का। पुरी की इस संस्था ने दावा किया है कि कोहिनूर पर भगवान जगन्नाथ का अधिकार है। इस संस्था ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अपील की है कि वे कोहिनूर को पुरी के मंदिर लाने में मदद करें। इस मांग को लेकर राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी सौंपा जा चुका है।
श्री जगन्नाथ सेना के प्रियदर्शन पटनायक के मुताबिक, कोहिनूर हीरा श्री जगन्नाथ भगवान का है। महाराजा रणजीत सिंह ने अगानिस्तान के नादिर शाह को हराने के बाद इस हीरे को भगवान जगन्नाथ को अपनी मर्जी से समर्पित किया था। रिसर्चर अनिल धीर का दावा है कि जब ब्रिटिश साम्राज्य ने रणजीत सिंह के बेटे दिलीप सिंह से कोहिनूर लिया था, तब उन्हें पता था कि यह हीरा भगवान जगन्नाथ का है। प्रियदर्शन पटनायक के मुताबिक, उन्होंने इस हीरे को लौटाने के लिए महारानी को भी चिट्ठी लिखी थी। 19 अक्तूबर 2016 को बकिंघम पैलेस ने जवाब में कहा था कि कोहिनूर की मांग सीधे तौर पर ब्रिटिश सरकार से की जानी चाहिए, क्योंकि महारानी अपने मंत्रियों की सलाह पर ही काम करती हैं और कई मौकों पर उनके फैसले राजनीति से जुड़े नहीं होते।
- इनवेस्टमेंट कंपनी के संस्थापक ने शुरू की ऑनलाइन याचिका :
इतना ही नहीं अमेरिका की निवेश कंपनी मोंटा विस्टा कैपिटल के संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर वेंकटेश शुक्ला ने भी एक ऑनलाइन पिटीशन शुरू की है। Change.org पर शुरू की गई इस याचिका के लिए 10 लाख हस्ताक्षर का लक्ष्य रखा गया है। शुक्ला ने लिंक्डइन पर इस पिटीशन को साझा करते हुए लिखा, “ब्रिटेन को अब कोहिनूर भारत को लौटा देना चाहिए। जब भी यह ताज कोहिनूर के साथ दिखता है तब इससे ब्रिटेन के साम्राज्यवादी इतिहास और शर्मनाक तरीकों की याद आती है कि किस तरह उन्होंने पांच साल के अपने राजकुमार के लिए भारत से कोहिनूर ले लिया था।”
शुक्ला ने अपील की है कि याचिका पर 10 लाख हस्ताक्षर आने के बाद 26 जनवरी 2023 को दुनियाभर में मौजूद भारतीयों को अपने करीब के दूतावास, कॉन्स्यूलेट या हाई कमीशन में जाकर याचिका को अफसरों को सौंपना चाहिए। शांतिपूर्ण और गौरवपूर्ण तरीके से। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन एक गौरवशाली देश है और उसे इस ‘लूट’ को इसके अधिकारी के पास लौटा देना चाहिए।
- भारत में सरकार और राजनीति का रुख?
ऐसा नहीं है कि कोहिनूर को भारत लाने की मांग सोशल मीडिया पर या ऑनलाइन याचिकाओं के जरिए ही उठी है। भारत सरकार भी इस ओर कई बार प्रयास कर चुकी है। भारत ने पहली बार ब्रिटेन से कोहिनूर 1947 में आजादी मिलने के बाद ही सौंपने की मांग की थी। इसके बाद सरकार की ओर से दूसरी बार 1953 में कोहिनूर लौटाने की मांग की गई। इसी साल एलिजाबेथ-II को राजगद्दी सौंपी गई थी। हालांकि, हर बार ब्रिटेन की सरकार ने भारत की मांग ठुकरा दी।
साल 2000 में भारत की तरफ से एक बार फिर ब्रिटेन से कोहिनूर लौटाने की मांग की गई। संसद के कुछ सदस्यों ने इस बार हीरे को लौटाने के लिए ब्रिटिश सरकार को चिट्ठी लिखी। हालांकि, ब्रिटिश सरकार ने साफ कर दिया कि कोहिनूर के कई दावेदार हैं। ऐसे में हीरे के सही मालिक का पता नहीं लगाया जा सकता। ब्रिटेन ने कहा कि कोहिनूर 150 साल से भी ज्यादा समय से उसके गौरव का हिस्सा है। 2016 में भारत के संस्कृति मंत्रालय ने कहा था कि वह कोहिनूर को भारत लाने के लिए हरसंभव कोशिश जारी रखेगा।
तो क्या भारत वापस आ सकता है कोहिनूर?
भारत और अफ्रीकी देशों की ओर से अब तक शाही ताज में लगे हीरों को लौटाने की मांग की गई है। हालांकि, ब्रिटिश राजपरिवार ने इसे लौटाने या इसे लेकर समझौता करने पर कोई बयान नहीं जारी किया है। यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने भी कोहिनूर को लौटाने की अब तक की मांगों को खारिज ही किया है।
जुलाई 2010 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत दौरे पर आए तो कोहिनूर लौटाने की बात उनके सामने भी उठी। हालांकि, कैमरन ने तब कहा था कि अगर ऐसी मांगों पर हां कर दिया गया तो ब्रिटिश म्यूजियम खाली हो जाएगा। मुझे कहना होगा कि इस मामले में मुझे यथास्थिति बरकरार रखनी होगी। इसी तरह फरवरी 2013 में भारत दौरे पर कैमरन ने फिर कहा था कि ब्रिटेन कोहिनूर नहीं लौटा सकता।
क्या हैं कोहिनूर न लौटाने के तर्क?
गौरतलब है कि दिलीप सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्य को यह हीरा पहले एंग्लो-सिख युद्ध (1846) में हार के बाद दिया था। इस युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने सिख साम्राज्य के साथ लाहौर की संधि की थी। इस संधि में एक खंड में कहा गया था- “कोहिनूर जिसे महाराज रणजीत सिंह ने शाह सूजा-उल-मुल्क से लिया था, उसे लाहौर के महाराज की तरफ से इंग्लैंड की महारानी को सौंपा जाना चाहिए।”
ब्रिटेन ने अब तक कोहिनूर न लौटाने के लिए इसी लाहौर की संधि का बहाना बनाया है। यहां तक कि जब लेबर पार्टी के भारतीय मूल के नेता कीथ वाज ने कोहिनूर को भारत लौटाने की मांग की थी, तब भी इसे अनसुना कर दिया गया था। यानी ब्रिटिश सरकार साफ कर चुकी है कि कोहिनूर का मालिकाना हक उसी का है और यह पूरी तरह वैध है।