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गुवाहाटी।महानगर में आगामी 9 जनवरी को राष्ट्रीय सामाजिक विकास समिति द्वारा ब्राह्मण भवन में राजस्थान का सिरमौर घूमर कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है l
घूमर का नाम आते हैं सांस्कृतिक धरोहर का सजीव चित्रण हमारे सामने आ जाता हैl यह राजस्थान का सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य हैै l घूमर राजस्थान का पारंपरिक नृत्य है l भील जनजाति,जिसमें इसे सरस्वती देवी की पूजा करने के लिए किया जाता था, जिसे बाद में अन्य राजस्थानी समुदाय ने अपना लिया l घुमर को राजस्थान के लोक नृत्यों की रानी कहा जाता है l यह लोकनृत्य थार के रेगिस्तान से लेकर डूंगरपुर, बांसवाड़ा के आदिवासी क्षेत्र अलवर, भरतपुर के मेवात क्षेत्र, कोटा, बूंदी झालावाड़ के हाडोती क्षेत्र एवं धौलपुर करौली के ब्रज क्षेत्र तक किया जाता है l घूमर को राजस्थान के लोक नृत्य की आत्मा, राजस्थान का सिरमौर, सामंती नृत्य व रजवाड़ी नृत्य भी बोला जाता है l घूमर विवाह, मांगलिक अवसरों व त्योहारों पर विशेष रूप से गणगौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता है l इसमें लहंगा पहने गोल घेरे में लोक नृत्य लोक गीत गाती हुई घूमर घूमते हुए नृत्य करती हैं l जब महिलाएं विशेष शैली में नाचती है तब के लहंगे का घेर व हाथों का संचालन अत्यंत आकर्षक होता है l गोल घेरा और हाथों का संचालन इस नृत्य की विशेषता है l हाथों का संचालन करते हुए महिला घूमती है तो उसे घूमर लेना कहते हैं तथा इनके लहंगे के गैर को कुंभ कहते हैं l लहंगे लुम के कारण इसे घूमर कहते हैं l इसमें 8 चरण होते हैं, जिससे सवाई कहा जाता है l यह राजस्थान का नृत्य है जो महाराजा उम्मेद सिंह के समय प्रारंभ हुआ माना जाता है l घूमर नृत्य के दौरान ढोल, नगाड़े, शहनाई आदि का प्रयोग किया जाता है l राजस्थान के पारंपरिक नृत्य को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का RSVS द्वारा एक प्रयास किया जा रहा हैl जिस तरह से असम में बिहू तथा गुजरात का डांडिया पारंपरिक नृत्य हम सब हर बार करते है,चलो इस बार राजस्थान का लोक नृत्य घूमर करे। गौरतलब है कि असम में पहली बार यह कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा है।